Judiciary and its Main Functions:-न्यायपालिका एवं उनके प्रमुख कार्य

Judiciary and its Main Functions

( 1 ) न्याय करना – न्यायपालिका का मुख्य कार्य देश की मूलभूत विधि के अनुसार न्यायिक कार्यों को करना है । न्यायपालिका दीवानी , फौजदारी एवं सांविधानिक मुकदमों को सुनकर व्यक्तियों के आपसी विवादों तथा सरकार व नागरिकों के बीच हुए विवादों का निर्णय करती है । न्यायपालिका न्याय कर अपराधियों को दण्ड देने की व्यवस्था भी करती है ।(Judiciary and its Main Functions)

( 2 ) संविधान की संरक्षक – संविधान की व्याख्या करने का अधिकार न्यायपालिका को ही प्राप्त है । यह संविधान में प्रतिपादित व्यवस्था एवं आदर्शों को यथावत रखकर संविधान के अनुसार कार्य करती है । संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत में न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या करने तथा न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है ।(Judiciary and its Main Functions)

( 3 ) मौलिक अधिकारों की संरक्षक – न्यायपालिका ही व्यक्ति के मौलिक अधिकारों व स्वतन्त्रताओं की रक्षा करती है । यदि व्यक्तियों एवं सरकार द्वारा व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो उनकी रक्षा का दायित्व न्यायपालिका का होता है ।(Judiciary and its Main Functions)

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Judiciary and its Main Functions

( 4 ) संविधान एवं व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित विधि की व्याख्या – संविधान तथा व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित विधि की व्याख्या करना न्यायपालिका का प्रमुख कार्य है । विधि की जटिलता तथा अस्पष्टता के कारण व्याख्या का प्रश्न उत्पन होता है । न्यायपालिका उन विधियों की व्याख्या करती है जो स्पष्ट नहीं होती । न्यायपालिका द्वारा की गई व्याख्या अन्तिम व सर्वमान्य होती है ।(Judiciary and its Main Functions)

( 5 ) संघ राज्य विवादों का निपटारा – संधात्मक राज्य अवस्था में केन्द्र एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन संविधान द्वारा किया जाता है किन्तु अनेक बार केन्द्र और राज्यों में शक्तियों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है , ऐसी स्थिति विनिवृत्ति में समस्या के समाधान के लिए स्वतन्त्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना नितान्त आवश्यक है ।(Judiciary and its Main Functions)

( 6 ) परामर्श सम्बन्धी कार्य – न्यायपालिका से यदि कार्यपालिका विधि व संविधान के जटिल प्रश्न पर परामर्श माँगती तो वह उसे परामर्श देने का कार्य भी न्यायपालिका करती है । भारत में यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझे तो संवैधानिक वन मानने या न मानने को बाध्य नहीं है । विषयों अथवा सार्वजनिक महत्व के विषयों पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श ले सकता है लेकिन वह उस परामर्श को मांगने को बाजी नहीं है।(Judiciary and its Main Functions)

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